रस किसे कहते है, अवयव, अंग, प्रकार, उदाहरण : Kavy Ras ka arth – हिंदी व्याकरण

काव्य-रस

काव्य रस शब्द की उत्त्पत्ति रसस्यते इति रस: से हुई है। रस को काव्य की आत्मा या प्राण कहते है।

इसका इस्तेमाल हम अपने आम ज़िन्दगी मे बहुत देखते है। खासतौर पर सिनेमा और फिल्मों मे देख सकते हैं।

रस के अवयव / भाग

इसके 4 अवयव होते है।

  1. स्थायी भाव
  2. अनुभाव
  3. विभाव
  4. संचारी / व्यभिचारी भाव

स्थायी भाव

मन मे संचरण करने वाले प्रधान भावों को स्थायी भाव कहते हैं। रस मे स्थायी भाव ही प्रधान होते है। इनकी संख्या मुख्यतः 9 होती है।

अनुभाव

मनोगत भाव को थोड़े समय के लिए ( भावों मे परिवर्तन ) व्यक्त करने वाले शरीर विकार अनुभाव कहलाते हैं। अनुभावों की संख्या 8 होती हैं।

  1. रोमांच
  2. स्तम्भ
  3. श्वेद (पसीना)
  4. कम्प (कांपना)
  5. स्वरभंग
  6. विवर्णता
  7. अक्षु
  8. प्रलय

एक लड़की अकेले रास्ते से जा रही थी, तभी एक मनचला उस लड़की के पीछे पड़ गया और उसे पलट पलट कर रहा था। तभी अचानक उस लड़के के शरीर को लगभग छूती हुए ट्रक बगल से निकला। वह लड़का एकदम से डर गया (स्तम्भ), वह पसीना पसीना हो गया (श्वेद), डर के मारे कांपने लगा (कम्प), उसका आवाज़ आना बंद हो गया (स्वरभंग)

विभाव

स्थायी भावों के उद्-बोधक कारण को विभाव कहते हैं। विभाव 2 प्रकार के होते हैं। आलम्बन और उद्दीपन।

आलम्बन विभाव

जिसका साहारा या आलम्बन पाकर स्थायी भाव जागृत होता है, आलम्बन विभाव कहलाता है।

आलम्बन विभाव दो प्रकार का होता है।

(अ) आश्रयालम्बन : जिसके मन मे भाव जगे, वह आश्रयालम्बन कहलाता है।
(ब) विषयालम्बन : जिसके प्रति भाव जगे, वह विषयालम्बन कहलाता है।

जैसे – अगर प्रेमिका के मन मे प्रेमी के लिए प्रेम जागृत हो तब, प्रेमिका (आश्रयालम्बन) और प्रेमी (विषयालम्बन) होगें।

उद्दीपन विभाव

जिन वस्तुयों या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव जागृत होता है, उसे उद्दीपन विभाव कहते हैं।
जैसे – कोकिल कुंजन, एकांक रमणीक स्थल, नायक और नायिका की शारीरिक चेष्ठाएं आदि।

संचारी / व्यभिचारी भाव

मन मे संचरण करने वाले भावो को संचारी अर्थात व्यभिचारी भाव कहते हैं। इनकी संख्या 33 होती है।


नोट – श्रृंगार रस को रसराज कहा जाता है।

  • संचारी भावो की संख्या 33 होती हैं।
  • भरतमुनि ने रसों की संख्या 8 मानी है।
  • रस सम्प्रदाय के प्रतिपादक भरतमुनि को माना गया है।
  • रस के प्रतिष्ठायक आचार्य मम्मट जी है।
  • शान्त रस को नौवाँ रस माना जाता है। इसके प्रतिष्ठायक आचार्य अभिनव गुप्त जी थे।
  • रसों वै सः (आनन्द ही ब्रम्ह है) तैत्तरीय उपनिषद मे कहा गया है।
  • “वाक्यम् रसात्मक काव्यम्” आचार्य विश्वनाथ जी की वाणी है।
  • “शब्दार्थों सहितं काव्यम्” आचार्य भामह जी ने।
  • “रमणीयार्थक शब्द काव्यम्” पंडित जगन्नाथ, इन्होंने रस गंगाधर की रचना की।
  • बिहारी श्रृंगार रस के लिए जाने जाते हैं। यह अपनी एकमात्र कृति बिहारी सतसयी के लिए विश्वविख्यात हो गए।
  • माधुर्य गुण का प्रयोग श्रृंगार Ras मे किया जाता है।
  • रसोत्पती मे आश्रय की चेष्ठाएं अनुभाव कहलाती है।
  • ट, ठ, ड, ढ़ वर्णों का प्रयोग “ओज” गुण के लिए किया जाता है।
  • रसवादी आलोचकों मे आचार्य रामचंद्र शुक्ल एवं डॉक्टर नागेंद्र प्रमुख हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल रस को “लौकिक” मानते हैं।
  • सभी रसों को मिलाकर नवरस कहा जाता है। अतः रसों की संख्या 9 मानना ही उचित है।

भरतमुनि का सूत्र

  • (१) विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद् रस निष्पत्ति
  • (२) नाना भावों पग माद रस निष्पत्ति / नाना भावो पहिता अपि स्थायीयनो भावा रसत्व याप्मुपन्ति अनेक भावो के मिलने से Ras की उत्त्पत्ति होती है। नाना भावो से युक्त स्थायी भाव रसावस्था को प्राप्त होती है।
  • (३) विभावानुभाव व्यभिचारी परिवृत स्थायी भावो रस नाम लगते नरेद्रवत् विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी से घिरे रहने वाले स्थायी भाव की स्थिति राजा के समान होती है।

Ras के प्रकार और परिभाषा

काव्य-रस

दोस्तों रस का ज्ञान होना एक आम आदमी के लिए ज़रूरी नही है। क्योंकि प्राकृतिक रूप से वह अपनी बढ़ती उम्र के साथ आसपास के माहौल के हिसाब से सिख लेता है।

हालाँकि इसका पूर्ण रूप से जानकारी केवल व्याकरण के शिक्षा से मिल सकती है। फिल्मकारों को भी इसका ज्ञान बहुत होता है।

Ras के भेद मुख्यतः निम्नलिखित हैं। इन्हें हम परिभाषा और उदाहरण से भी समझेंगे।

श्रृंगार रस

जब किसी स्त्रीलिंग और पुलिंग के बीच का सम्बंध प्रेम से लिप्त हो तो वहाँ पर श्रृंगार Ras होता है। इसे आसान भाषा मे समझते हैं।

“कोई स्त्री-पुरुष, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी, हीरो-हीरोइन आदि के बीच के प्यार को श्रृंगार रस कहते हैं।

यह 2 प्रकार का होता है। संयोग और वियोग (विप्रलम्भ)।

संयोग श्रृंगार

संयोग काल मे नायक और नायिका की पारस्परिक रति या प्रेम को संयोग श्रृंगार रस कहते हैं। स्थायी भाव – रति/प्रेम

उदाहरण :
(१) राम के रूप को निहारती जानकी
कंगन के नग की परछाई
या तै सवै सुधि भूलि गई
करतेकी रही पल तारत नाही

(२) दुध दुहत अति ही रति बाढ़ी
एक धार दोहनी पहुचावत जहाँ प्यारी ढाड़ी

वियोग श्रृंगार

जब नायक और नायिका मे अलगाव होता है, वहां पर वियोग श्रृंगार रस होता है। स्थायी भाव – रति

उदाहरण :
(१) हे खग हे मृग मधुपनिकर श्रेनी
तुम ने देखी सीता मृग नयनी

(२) निसी दिन बरसात नयन हमारे
सदा रहति पावस, ऋतु हम पै, जब तै श्याम सिधारे

हास्य

वेश-भूषा वाणी चेष्टा आदि को देखकर मन मे जो विनोद का भाव जागृत होता है वहीं परिणित होकर हास्य ras मे बदल जाता है। स्थायी भाव – हास्य

उदाहरण : तंबूरा लेकर मंच पर बैठे बैठे प्रेम प्रताप
साण मिले प्रन्द्रह मिनट घण्टाभर अलाप
घण्टाभर आलाप राग मे मारा गोता
धीरे धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता

करुण रस

किसी भी कारण बिछड़ जाने से करुण रस की निष्पत्ति होती है। स्थायी भाव – शोक

उदहारण : (१) अभी तो मुकुट बधां या माथ
हुए फल ही हल्दी के हाथ
खुले भी न् थे लाज के बोल
खुले थे चुम्बन शून्य कपोल

(२) जो साथिनी होकर भी न बन सकी सहभागिनी
अब उसका कोई नही इस जगत मे अनाथनी

वीर रस

युद्ध या कठिन काम को करने के लिए मन मे जो उत्साह उत्पन्न होता है वही वर्णित होकर वीर रस का रूप ले लेता है। स्थायी भाव – उत्साह

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने चार प्रकार के वीर Ras को माना है।

  1. युद्धवीर
  2. दानवीर
  3. धर्मवीर
  4. दयावीर

उदाहरण (आर्यन मौर्य द्वारा लिखित) :
(१) हम अपने मातृभूमि के लिए शाहिद हो जाएंगे क्योंकि ये हमारी भारत माता है!
सुन ध्यान लगाकर ऐ धूर्त, इसीलिए हम जैसों को शेर और तुम जैसों को गीदड़ कहा जाता है !!

रौद्र रस

अपना अपमान, बड़ों की निन्दा या किसी दुष्ट अत्याचारी द्वारा किये गए अत्याचारों को देखकर अथवा गुरुजनों की निन्दा देखकर सुनकर मन मे उत्पन्न अमर्स के पुष्ट होने पर रौद्र रस की व्युत्पत्ति होती है। स्थायी भाव – अमर्स/क्रोध

उदाहरण : आँखे लम्बन कुटिल भई भौंहे, रद पद फरकत नयन री सौवे।

भयानक रस

किसी भयानक वस्तु को देखने, घोर अपराध करने पर दण्डित होने के विचार, शक्तिशाली शत्रु या विरोधी का सामना होने से मन मे उत्पन्न भय को ही भयानक रस कहते हैं। स्थायी भाव – भय

उदाहरण :
उधर गरजती कुटिल कालू के ज्वालो सी
चली आ रही फेन उगलती फन फैलाएं ख्यालों सी

बीभत्स रस

गंदी, घोर, अरुचिकर, घृणित वस्तु जैसे – पीव (मवाद), माँस-मज्जा, हड्डी, माँस दुर्गंध, अन्न का सड़न के वर्णन के जो घृणा व्याप्त होती है वही पर्णीत होकर बीभत्स रस मे बदल जाता है। स्थायी भाव – घृणा/जुगुप्सा

उदाहरण :
सिर पर बैठ्यो काग आँख दोऊ खात निकारत
खिचत जीभही स्यार अति ही आनन्द उर (हृदय) धारत

अद्भुत रस

किसी असाधर वस्तु या कर्म को देखकर जो हमारे मन मे विस्मय उत्पन्न होती है। वही पर्णीत होकर अद्भुत रस मे बदल जाती है। स्थायी भाव – विष्मय/आश्चर्य

उदाहरण –
(१) विनु पद चलै सुनै विनू काना,
कर्म हीन कर्म करै विधि नाना ।

(२) अखिल भुवन चर अचर सब हरि मुख मे लखि मातु
चकित भई गदगद वचन विकसित दृग पुलकातु

(३) आनन रहित सकल रस भोगी
बिनु वाणी वक्ता वड़ जोड़ी

शान्त रस

संसार की छड़ भंगुरता एवं सांसारिक विषयभोगी की असारता तथा परमात्मा के ज्ञान से उत्पन्न निर्वेद ही शान्त रस मे पर्णीत हो जाता है। स्थायी भाव – शम/निर्वेद (वैराग्य/वितराग)

उदाहरण : (१) मन रे तन कागद का पुतला
लागै बूँद विनसी जय क्षन मे गरव करै क्या इतना

(२) चिन्ता तब हरि नाव की और न चिन्ता दास जे

वत्सल रस

बालकों के प्रति को बड़ों का स्नेह होता है, वही पर्णीत होकर वत्सल रस मे बदल जाता है। स्थायी भाव – वत्सत्य रति

उदाहरण : (१) यसोदा हरि पालने झुलावे
हलरावे मल्हरावे, दूल्हरावे जो साई कुछ गावय

(२) किलकत कान्हा घुटुरुवन आवत
समिनय कनक नंद के आंगन विम्ब पकरिवे धावत

भक्ति रस

अपने ईष्ट माता, पिता, गुरु अथवा अन्य के प्रति मन मे जो अनुराग उत्पन्न होता है वही पुष्ट होकर भक्ति रस मे बदल जाता है। स्थायी भाव – अनुराग/भगवत विषयक रति

उदाहरण : राम जपु राम जपु राम जपु बावरे
घोर भव नीर निधि नाव निज नाम रे


धन्यवाद !

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